किरायेदारों से परेशान मकान मालिक और मकान मालिक से परेशान किराएदार। बीच में हवेली और चारो तरफ घूमती कहानी। कुल यही फलसफा है गुलाबो-सिताबो (gualbo-sitabo) हमारे आज के ultimate review का .
क्विकीज़--
प्लेटफॉर्म:- अमेजन प्राइम ओरिजिनल
जेनर:- कॉमेडी ड्रामा
डाइरेक्टर:- शुजीत सरकार
कहानी:- जूही चतुर्वेदी
अल्टीमेट रिव्यु रेटिंग:- 8/10
कास्ट गुलाबो सिताबो :-
1.अमिताभ बच्चन (मिर्जा शेख)
2.आयुष्मान खुराना ( बांके रस्तोगी)
3.विजय राज ( सरकारी अफसर )
4.बृजेंद्र काला ( वकील)
5.फारुख जफर( बेगम)
6.सृष्टि श्रीवास्तव(गुड्डो )
कहानी @ Gulabo-Sitabo:-
मिर्ज़ा साहब (अमिताभ बच्चन) एक पुरानी हवेली "फातिमा महल" के मालिक हैं।यूँ तो हवेली उनकी बीबी फातिमा की है जो खुद उनसे 17 साल बड़ी हैं पर मिर्ज़ा खुद को ही मालिक मानते हैं।
हवेली में वैसे कई किराएदार हैं पर मुख्य हैं बाँके रस्तोगी (आयुष्मान खुराना) जिनके ऊपर तीन बहनों और मां की जिम्मेदारी है। बाँके की जिंदगी के सबसे बड़े विलेन हैं मिर्ज़ा और मिर्ज़ा के बाँके। बिल्कुल गुलाबो सिताबो जैसी कहानी की तरह जिसमें दो सौत हमेशा लड़ती रहती हैं। बाँके किराया नहीं देते और मिर्ज़ा उनका बल्ब चुराकर बेच देते हैं।
मिर्ज़ा को इंतेज़ार है बेगम के मरने का जिससे हवेली पूरी तरह से उनकी हो जाए। मिर्ज़ा एक वकील के जरिये हवेली हड़पने में लगे हैं वहीं वकील उन्हें पट्टी पढ़ाकर एक बड़े बिल्डर को हवेली दिलवाना चाहता है।
इस बीच एक और महाशय आते हैं ज्ञानेश शुक्ला (विजय राज़)जो पुरातत्व विभाग से हैं और वो बाँके को झांसे में लेकर हवेली पुरातत्व विभाग के हवाले से एक मंत्री को दिलवाने के प्रयास में हैं।
कहानी एक किरदार से दूसरे तक घूमती रहती है और अंत में हवेली किसकी होती है, यह एक सस्पेंस है जिसे आप निश्चित रूप से खुद ही जानना चाहेंगे।
अल्टीमेट रिव्यु @ गुलाबो सिताबो:-
शुजीत सरकार और जूही चतुर्वेदी की जोड़ी ने हमे अक्टूबर और पीकू जैसी बेहतरीन फिल्मे दी हैं। इस बार यही जोड़ी लाई है गुलाबो सिताबो। कहानी अच्छी है और धीमी लेकिन सधी हुई गति से आगे बढ़ती है। हालाँकि इसे कम समय में पूरा किया जा सकता था।
डाइरेक्शन और आर्ट वर्क कमाल का है। कैमरा पुराने लखनऊ की नफ़ासत और हकीकत दोनों को ही समेटने में सफल रहा है। अमिताभ बच्चन पूरी तरह से मिर्ज़ा के अपने किरदार में डूब गए हैं। उनका काम पूरी फ़िल्म में दिखाई पड़ता है।
आयुष्मान अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश के बावजूद कहीं कहीं कुछ कमी सी छोड़ते हैं। सह कलाकरों में विजय राज़ अपने किरदार में जीवंत हैं और अपने ही अंदाज़ में मौजूद भी हैं।
ब्रजेन्द्र काला वकील के किरदार में जंचते हैं।बाँके की बहन गुड्डो के किरदार में हम सृष्टि श्रीवास्तव को देखते हैं जो टी वी एफ और टी एस पी जैसे यूट्यूब चैनल पर काफी चर्चित हैं। सृष्टि अपने किरदार को आराम से निभाती हैं। और अंत में बेगम के रूप में फारूख ज़फर सहज और मनोरंजक हैं।
क्यों देखें :-
लंबे समय बाद पारिवारिक फ़िल्म के तौर पर आयी गुलाबो सिताबो एक सहज सरल कहानी है जिसे मूड बदलने के लिए देखा जा सकता है।मूल रूप से यह सिनेमा घरों के लिए बनाई गयी थी पर लॉक डाउन में ott पर रिलीज की गयी। अमिताभ जी के अच्छे किरदारों में से एक को देखना हो तो गुलाब को तो देखना ही पड़ेगा ।
क्यो न देखें :-
फ़िल्म धीमी गति से चलती है तो हो सकता है कि कुछ दर्शक बोरियत महसूस करें। ऐसे लोग जिन्हें एक्शन और एडवेंचर फिल्मे ही पसंद हैं वह चाहें तो इसे छोड़ भी सकते हैं और केवल हमारा गुलाबो-सिताबो अल्टीमेट रिव्यु पढ़कर ही काम चला सकते हैं।
Very appealing review
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