सैनिक की चिट्ठी
माँ आखिरी ये खत मैं आज तुमको लिख रहा हूँ ,
सारे युध्द क्षेत्र में मैं अकेला दिख रहा हूँ ,
गोलियाँ लगी हैं ,हाथ-पाँव खून-खून हैं,
फ़िर भी अंतिम पत्र में माँ, बोलता जुनून है ,
माँ तेरा ये लाडला शत्रुओं से ऐसे अड़ गया,
माँ तेरा ये लाडला जमीं में ऐसे गढ़ गया ।
माँ मेरी भुजा में शत्रुओं को सिर्फ काल दिखता था,
और मुझे तेरा बोला एक ही सवाल दिखता था ,
जब तूने कहा था माँ कि या तो विजयी शीश लेकर आना
या तिरंगे के रंगो में घुलकर वीरता अमर बनाना ,
माँ तेरे लाडले का देख आज अंबर फ़ट गया है,
कारगिल बचाने को बेटा इंच-इंच कट गया है ।
माँ वो बचपन में तूने जो पिस्तौल का एक खिलौना दिलाया था ,
बाबूजी ने ऊँगली पकड़ कर जो उसे चलाना सिखाया था,
माँ वो ऊँगली का पकड़ना आज याद ऐसे आ रहा है
जैसे कोई पंछी छोड़ आसमान जा रहा है ,
माँ हिमालय से बड़ा मैं दुश्मनों के आगे एक चट्टान था,
तेरा बेटा रण भूमि की आन-बान-शान था ,
दुश्मन भी चौंक उठे देख कि, किस मिट्टी का बना है,
बोल उठे-तुझे जरूर किसी सिंहनी ने ही जना है ॥
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